पितृपक्ष में कोई भी शुभ कार्य क्यों नहीं करना चाहिए?
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक (लगभग 15 दिन) पितृपक्ष मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण, तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं।
परंपरा के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय शुरू करना, नामकरण संस्कार, मुंडन संस्कार आदि नहीं किए जाते।
पितृपक्ष में शुभ कार्य न करने का कारण
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पूर्वजों का समय माना जाता है
इस पक्ष को पितरों का पखवाड़ा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण व श्राद्ध की अपेक्षा करते हैं। इस कारण अन्य शुभ कार्य करना उचित नहीं माना जाता। -
श्राद्ध कर्म की प्रधानता
पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कर्म करना है। इस दौरान अन्य मांगलिक कार्य करने से ध्यान बंट सकता है और श्राद्ध कर्म की शुद्धता प्रभावित हो सकती है। -
धार्मिक मान्यता
शास्त्रों में कहा गया है कि पितृपक्ष में किए गए शुभ कार्यों का पूर्ण फल नहीं मिलता। विवाह या नया कार्य करने से बाधाएँ आ सकती हैं। -
ऊर्जा और वातावरण
पितृपक्ष को तामसिक काल माना जाता है। इन दिनों वातावरण में शांत और गंभीरता होती है। शुभ कार्यों के लिए सात्त्विक और मंगलकारी समय की आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हें इस पक्ष में टाल दिया जाता है। -
परंपरा और सामाजिक मान्यता
पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, इस समय केवल पितरों की सेवा और तर्पण को ही सर्वोपरि माना गया है। समाज में भी पितृपक्ष के दौरान कोई बड़ा उत्सव या आयोजन नहीं किया जाता।
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए?
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पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करना।
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गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराना।
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पितरों के नाम से दान देना।
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व्रत और संयम का पालन करना।
❓ पितृपक्ष से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. पितृपक्ष में शुभ कार्य क्यों नहीं किए जाते?
पितृपक्ष को पूर्वजों को समर्पित माना जाता है। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की प्रधानता होती है। इसलिए विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
2. क्या पितृपक्ष में नया व्यवसाय शुरू किया जा सकता है?
नहीं, पितृपक्ष में कोई भी नया कार्य या व्यवसाय शुरू करना शुभ नहीं माना जाता क्योंकि यह समय पूर्वजों की स्मृति और श्राद्ध के लिए होता है।
3. पितृपक्ष में क्या करना चाहिए?
इस समय श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और गरीबों को दान करना सबसे श्रेष्ठ कर्म माना जाता है।
4. क्या पितृपक्ष में व्रत और पूजा की जा सकती है?
हाँ, पितृपक्ष में व्रत और पूजा की जा सकती है, लेकिन यह पितरों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत शुभ कार्य के लिए।
5. पितृपक्ष कितने दिन का होता है?
पितृपक्ष कुल 15 दिनों का होता है, जो भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है।
निष्कर्ष
पितृपक्ष पूर्वजों को समर्पित होता है। इस समय अपने पितरों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध करना ही सबसे बड़ा पुण्य है। इसलिए इन दिनों किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से वर्जित माना जाता है।