पाँचवाँ दिन: देवी स्कंदमाता की पूजा (Fifth Day: Worship of Goddess Skandamata)

 पाँचवाँ दिन: देवी स्कंदमाता की पूजा 

(Fifth Day: Worship of Goddess Skandamata)


 देवी स्कंदमाता का परिचय
 (Introduction of Goddess Skandamata)

नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। स्कंदमाता का नाम उनके पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) के कारण पड़ा, जो युद्ध के देवता माने जाते हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों को सुरक्षा, शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। उन्हें शिशु रूप में भगवान स्कंद को गोद में लिए हुए दर्शाया जाता है, जो उनके मातृत्व और करुणा का प्रतीक है।
 
देवी स्कंदमाता का यह रूप यह दिखाता है कि वह अपने भक्तों के लिए ममतामयी माँ हैं और उन्हें हर प्रकार की आपदा से बचाती हैं। माँ के इस रूप की पूजा करने से भक्तों को संतान सुख, परिवार में शांति, और जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।

 स्कंदमाता का स्वरूप और प्रतीकात्मकता 

(Form and Symbolism of Goddess Skandamata)

स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और करुणामयी होता है। उनका रूप चार भुजाओं वाला होता है। उनके दो हाथों में कमल के फूल होते हैं, एक हाथ में भगवान स्कंद बालक रूप में विराजमान होते हैं, और एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में होता है।
 
स्कंदमाता का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। कमल के फूल, जो उनके हाथों में हैं, पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माने जाते हैं। यह रूप बताता है कि माँ स्कंदमाता शक्ति और ममता का अद्भुत संगम हैं। उनका सिंह पर बैठना यह दर्शाता है कि वह हर बाधा और विपत्ति से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं, और आशीर्वाद मुद्रा यह बताती है कि वह अपने भक्तों को स्नेहपूर्वक आशीर्वाद देती हैं।
 
भगवान स्कंद, जो उनके गोद में होते हैं, माता-पिता के प्रेम और देखभाल का प्रतीक हैं। यह उनके भक्तों के प्रति ममतामयी स्वभाव को दर्शाता है। स्कंदमाता का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा से माँ की आराधना करने से सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
 

 देवी स्कंदमाता की आराधना का महत्व

 (Significance of Worshiping Goddess Skandamata)
नवरात्रि के पाँचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। स्कंदमाता की कृपा से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और पारिवारिक जीवन में शांति और समृद्धि आती है। जिन भक्तों को संतान प्राप्ति में बाधा होती है, उनके लिए स्कंदमाता की पूजा विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है।
 
स्कंदमाता की पूजा से व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। उनका आशीर्वाद जीवन की समस्याओं और चुनौतियों को पार करने में मदद करता है। स्कंदमाता की पूजा से ध्यान और योग साधना में भी गहरी अनुभूति प्राप्त होती है, जिससे साधक आध्यात्मिक रूप से उच्च अवस्था को प्राप्त करता है।
 
उनकी पूजा करने से भक्तों की आत्मा पवित्र होती है और सभी पापों का नाश होता है। स्कंदमाता की कृपा से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं और उन्हें हर संकट से उबारती हैं।
 
मंत्र: 
_"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। 
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥"_ 
 
यह मंत्र स्कंदमाता की पूजा के समय जपने से विशेष लाभकारी माना जाता है। स्कंदमाता की आराधना से भक्तों को जीवन में हर प्रकार की समस्याओं से मुक्ति और सौभाग्य प्राप्त होता है।
 
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इस प्रकार, देवी स्कंदमाता का पूजन जीवन के हर पहलू में समृद्धि और शांति प्रदान करता है। नवरात्रि के इस पाँचवे दिन पर देवी की आराधना और व्रत करना अत्यंत फलदायी माना जाता है, जिससे जीवन में हर प्रकार की बाधाओं का नाश होता है।
  स्कंदमाता पूजा विधि (Skandamata Puja Vidhi)
 
नवरात्रि के पाँचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन उनकी पूजा विधि-विधान से करने से भक्तों को सुख, शांति, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। स्कंदमाता की पूजा से माता अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी करती हैं। आइए जानते हैं स्कंदमाता की पूजा विधि, आवश्यक सामग्री, और व्रत के महत्व के बारे में:
 

 स्कंदमाता की पूजा विधि 
(Skandamata Puja Vidhi)

- प्रातःकाल स्नान: पूजा से पहले स्नान कर स्वयं को शुद्ध करें। इसके बाद देवी के पूजा स्थल को साफ करें और उन्हें स्नान कराएं।
- स्थान तैयार करें: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान पर माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर रखें। इसे एक साफ लाल या पीले वस्त्र पर स्थापित करें।
- घट स्थापना (कलश स्थापना): देवी की प्रतिमा के सामने कलश स्थापित करें, जो पूजा का अभिन्न अंग होता है। कलश पर नारियल रखें और उसे मौली (पवित्र धागा) से बाँधें।
- दीप जलाएं: दीपक जलाकर माँ स्कंदमाता के समक्ष रखें। यह दीप ज्ञान और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है।
- पंचामृत स्नान: देवी की मूर्ति या चित्र को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं और उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- सुगंधित फूल चढ़ाएं: स्कंदमाता को सफेद रंग के फूल प्रिय होते हैं। इसलिए सफेद फूलों की माला चढ़ाएं। अगर सफेद फूल न हों, तो कोई भी सुगंधित फूल चढ़ा सकते हैं।
- तिलक और धूप-दीप: देवी को कुमकुम, चंदन, और अक्षत (चावल) का तिलक लगाएं। फिर धूप-दीप जलाकर उनकी आरती करें।
- भोग अर्पण: स्कंदमाता को प्रसाद के रूप में फल, मिठाई (विशेष रूप से खीर), पंचामृत, और नारियल अर्पित करें।
- मंत्र और स्तुति: स्कंदमाता की पूजा के समय उनके मंत्रों और स्तोत्रों का जप करें।


 

 सामग्री और विधान 
(Materials and Procedure)


- प्रतिमा या चित्र: स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र।
- कलश: जल, नारियल, आम के पत्ते।
- साफ वस्त्र: देवी को चढ़ाने के लिए लाल या पीला वस्त्र।
- सुगंधित फूल: सफेद रंग के फूल (सदाबहार, चमेली)।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर।
- सुपारी, लौंग, इलायची: पूजा सामग्री के रूप में।
- धूप, दीपक और कपूर: आरती के लिए।
- प्रसाद: खीर, फल, पंचामृत, मिठाई।
 
पूजा के समय ध्यान रखें कि पूजा विधि शुद्धता और श्रद्धा से की जाए। सभी सामग्री को साफ और व्यवस्थित रखें।


 

 मंत्र और प्रार्थनाएँ 
(Mantras and Prayers)

स्कंदमाता की पूजा के समय निम्न मंत्रों का जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है:
 
- ध्यान मंत्र: 
  _"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। 
  शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥"_
 
  इस मंत्र का जाप करते हुए माँ स्कंदमाता का ध्यान करें। ध्यान के समय माँ के सिंह वाहन, हाथों में कमल और गोद में बालक स्कंद का ध्यान करें।
 
- पूजन मंत्र: 
  _"ॐ देवी स्कंदमातायै नमः।"_ 
  इस मंत्र का जाप पूजा के दौरान 108 बार करें। यह मंत्र देवी स्कंदमाता की कृपा पाने का प्रमुख साधन है।
 
- अर्गला स्तोत्र: 
  _"जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। 
  दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥"_
 
  यह स्तोत्र माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की स्तुति करता है, और पाँचवे दिन विशेष रूप से स्कंदमाता के लिए इसका पाठ करना लाभकारी माना जाता है।


व्रत और उपवास का महत्व 
(Significance of Fast and Fasting)

नवरात्रि के पाँचवे दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। इस दिन उपवास रखने से मनुष्य को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। स्कंदमाता का उपवास संतान सुख, शांति, और पारिवारिक समृद्धि के लिए किया जाता है।
 
- व्रत का उद्देश्य: उपवास के माध्यम से भक्त अपनी इंद्रियों पर संयम रखते हैं और अपने जीवन में सरलता और शुद्धता का संचार करते हैं। यह व्रत भक्त को माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए संयमित जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
- व्रत नियम: उपवास रखने वाले भक्त इस दिन केवल फलाहार (फल, दूध, मेवा) करते हैं। इस दिन अन्न का सेवन वर्जित होता है। इसके अलावा, एक समय भोजन करने की परंपरा भी कई जगहों पर होती है।
- उपवास का लाभ: यह उपवास मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है। व्रत करने से शरीर और मन शुद्ध होते हैं, और ध्यान और साधना में गहराई आती है।
 
व्रत और पूजा की समाप्ति पर देवी की आरती करें और प्रसाद वितरण करें। इससे देवी की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।
 
स्कंदमाता की पूजा और व्रत नवरात्रि के पाँचवे दिन पर बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सच्चे मन और श्रद्धा से पूजा करने से सभी कष्टों का नाश होता है और भक्तों को देवी की असीम कृपा प्राप्त होती है।


स्कंदमाता और आध्यात्मिक शक्ति 
(Skandamata and Spiritual Power)
 
 1. आध्यात्मिक रूप से स्कंदमाता का महत्व (Spiritual Significance of Skandamata)
स्कंदमाता, नवरात्रि के पाँचवे दिन पूजी जाने वाली माँ दुर्गा का पवित्र और शक्तिशाली रूप हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से स्कंदमाता का महत्व बहुत गहरा है। वह माँ दुर्गा का वह रूप हैं, जो प्रेम, ममता और करुणा का प्रतीक हैं। स्कंदमाता को उनकी गोद में विराजमान बालक स्कंद (कार्तिकेय) के कारण यह नाम मिला है। उनका यह स्वरूप दिखाता है कि वह अपने भक्तों के प्रति एक ममतामयी माता की तरह व्यवहार करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।
 
आध्यात्मिक रूप से स्कंदमाता अपने भक्तों को ज्ञान और विवेक प्रदान करती हैं। वह आध्यात्मिक साधकों को उच्च आध्यात्मिक अवस्थाओं तक पहुँचने में मदद करती हैं। उनका स्वरूप यह दर्शाता है कि जब भक्त सच्चे हृदय से उनकी आराधना करते हैं, तो वह उन्हें आंतरिक शांति और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती हैं। उनके आशीर्वाद से भक्तों का मन शांत और स्थिर रहता है, जिससे ध्यान और साधना में गहराई आती है।
 
स्कंदमाता का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है। स्कंदमाता की कृपा से साधक अपनी आंतरिक शक्तियों का अनुभव करता है और उन पर नियंत्रण पाने में सक्षम हो जाता है।
 
 2. उनके आशीर्वाद से प्राप्त होने वाले लाभ (Blessings of Skandamata)
स्कंदमाता की पूजा और आराधना से भक्तों को आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को न केवल भौतिक समृद्धि बल्कि आत्मिक शांति और संतुलन भी प्राप्त होता है।
 
- आध्यात्मिक जागरूकता: स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों की आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है। उनकी कृपा से साधक जीवन के गहरे आध्यात्मिक सत्य को समझने में सक्षम होता है।
- ज्ञान और विवेक: स्कंदमाता अपने भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और विवेक प्रदान करती हैं। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति में सही-गलत की पहचान करने की क्षमता विकसित होती है, जिससे वह जीवन में सन्मार्ग पर चलने में सक्षम होता है।
- संतान सुख: स्कंदमाता की कृपा से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। वे माता-पिता के जीवन में प्रेम, ममता और संतुलन का संचार करती हैं।
- सभी बाधाओं का नाश: स्कंदमाता अपने भक्तों के सभी संकटों और बाधाओं का नाश करती हैं। वह भक्तों के मार्ग में आने वाली हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर देती हैं, जिससे उनके जीवन में सुख और समृद्धि का प्रवाह बना रहता है।
- सौभाग्य और समृद्धि: स्कंदमाता के आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है। वह धन, ऐश्वर्य और पारिवारिक सुख में वृद्धि करती हैं।
 
 3. स्कंदमाता की कृपा से जीवन में शांति और समृद्धि (Peace and Prosperity through Skandamata’s Grace)
स्कंदमाता की कृपा से जीवन में अद्वितीय शांति और समृद्धि का अनुभव होता है। जब भक्त सच्चे हृदय से उनकी पूजा करते हैं, तो माँ स्कंदमाता उनके जीवन से सभी कष्ट और संकटों का नाश करती हैं। उनके आशीर्वाद से परिवार में शांति का वातावरण बनता है, और सभी प्रकार की कलह और अशांति समाप्त होती है।
 
- मानसिक शांति: स्कंदमाता की आराधना से व्यक्ति के मन में शांति और संतुलन की अनुभूति होती है। वह मानसिक तनाव और चिंता को समाप्त करती हैं, जिससे व्यक्ति को आंतरिक शांति का अनुभव होता है।
- सफलता और समृद्धि: स्कंदमाता की कृपा से व्यक्ति के जीवन में हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। वह अपने भक्तों के सभी कार्यों में सफलता का आशीर्वाद देती हैं, जिससे जीवन में समृद्धि और धन का आगमन होता है।
- परिवार में सौहार्द: स्कंदमाता की पूजा से पारिवारिक जीवन में सामंजस्य और प्रेम की वृद्धि होती है। वह परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम और समझ को बढ़ाती हैं, जिससे परिवार में शांति और सुख बना रहता है।
- आध्यात्मिक समृद्धि: स्कंदमाता की कृपा से भक्त को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। वह साधक को आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने और आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायता करती हैं।
 
स्कंदमाता के आशीर्वाद से जीवन में न केवल भौतिक सुख-सुविधाएँ आती हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी व्यक्ति सशक्त और संतुलित महसूस करता है। उनका प्रेम और करुणा भक्तों के जीवन को हर प्रकार से सुखमय बना देता है।
 स्कंदमाता से जुड़ी अन्य लोक मान्यताएँ और कथाएँ (Other Folklore and Legends)


 

 स्कंदमाता से जुड़ी कथाएँ और पौराणिक कहानियाँ 
(Legends and Mythological Stories Related to Skandamata)

स्कंदमाता की पूजा और उनके स्वरूप से जुड़ी कई पौराणिक कहानियाँ हैं, जो उनकी महिमा और शक्ति का बखान करती हैं। भारतीय पौराणिक कथाओं में स्कंदमाता की भूमिका मुख्य रूप से उनके पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) के जन्म और उनके द्वारा राक्षसों के संहार से जुड़ी हुई है। स्कंदमाता को शक्ति और मातृत्व का प्रतीक माना जाता है, और उनके आशीर्वाद से उनके पुत्र कार्तिकेय ने देवताओं के सेनापति के रूप में महिषासुर और तारकासुर जैसे राक्षसों का नाश किया।
 
 कथा 1: तारकासुर वध और स्कंदमाता की भूमिका
तारकासुर नामक राक्षस ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया कि केवल शिवजी का पुत्र ही उसे मार सकता है। उस समय भगवान शिव विवाह से दूर ध्यान में लीन थे और उनका कोई पुत्र नहीं था। देवताओं को इस वरदान से अत्यधिक भय हुआ क्योंकि तारकासुर ने संपूर्ण पृथ्वी और स्वर्ग में आतंक मचा रखा था।
 
देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव का विवाह पार्वती जी से हुआ, और उनके पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) का जन्म हुआ। स्कंद ने अपनी माँ स्कंदमाता के आशीर्वाद से बल और वीरता प्राप्त की। स्कंदमाता के पोषण और संरक्षण में भगवान स्कंद ने सभी शक्तियों का विकास किया और अंततः तारकासुर का वध किया। इस प्रकार स्कंदमाता की शक्ति और करुणा ने राक्षसों के विनाश और संसार में शांति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
 
 कथा 2: महिषासुर मर्दिनी के रूप में स्कंदमाता
दुर्गा सप्तशती और अन्य पौराणिक ग्रंथों में माँ दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजा जाता है, जो महिषासुर राक्षस का वध करती हैं। यह माना जाता है कि स्कंदमाता का यह स्वरूप भी माँ दुर्गा के महाशक्ति रूप का ही एक रूप है। महिषासुर राक्षस ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं ने माँ दुर्गा से प्रार्थना की, जिन्होंने स्कंदमाता के रूप में प्रकट होकर अपने पुत्र स्कंद के सहयोग से महिषासुर का वध किया।
 
इस कथा में स्कंदमाता को मातृत्व के साथ-साथ एक शक्तिशाली योद्धा देवी के रूप में दिखाया गया है, जो दुष्टों का संहार करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
 
 कथा 3: संतान प्राप्ति की मान्यता
स्कंदमाता को संतान सुख प्रदान करने वाली देवी के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो दंपति संतान प्राप्ति में कठिनाई का सामना कर रहे होते हैं, वे स्कंदमाता की पूजा और व्रत करते हैं। एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक राजा और रानी जिन्हें संतान नहीं हो रही थी, उन्होंने स्कंदमाता की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें संतान का आशीर्वाद दिया। यह कथा आज भी उन भक्तों में विशेष रूप से लोकप्रिय है, जो संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
 
 लोक परंपराओं में स्कंदमाता की पूजा 
(Worship of Skandamata in Folk Traditions)

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्कंदमाता की पूजा से जुड़ी कई लोक मान्यताएँ और परंपराएँ प्रचलित हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में स्कंदमाता को ममता और सुरक्षा की देवी के रूप में पूजा जाता है।
 
 संतान प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की पूजा
जैसा कि पौराणिक कथाओं में वर्णित है, स्कंदमाता को संतान सुख की देवी माना जाता है। उत्तर भारत के कई हिस्सों में जिन परिवारों को संतान नहीं होती, वे विशेष रूप से स्कंदमाता की आराधना करते हैं। देवी के मंदिरों में जाकर विशेष पूजा, हवन और व्रत रखे जाते हैं। मान्यता है कि देवी की कृपा से नि:संतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है और परिवार में खुशहाली आती है।
 
 ग्रामीण क्षेत्रों में माँ स्कंदमाता की पूजा
ग्रामीण क्षेत्रों में स्कंदमाता को मातृत्व और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। वहां की महिलाएँ देवी स्कंदमाता की पूजा विशेष रूप से करती हैं ताकि उनके परिवार और संतान सुरक्षित रहें और घर में सुख-शांति बनी रहे। विशेष रूप से खेतीबाड़ी करने वाले परिवारों में स्कंदमाता की पूजा यह मानकर की जाती है कि उनकी कृपा से फसलें अच्छी होंगी और परिवार में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी।
 
 नवरात्रि की पारंपरिक पूजा
नवरात्रि के पाँचवे दिन स्कंदमाता की विशेष पूजा की जाती है। गाँवों में महिलाएँ पारंपरिक रूप से समूह में एकत्र होकर देवी की पूजा करती हैं। इस पूजा के दौरान माँ की आरती गाई जाती है, भजन गाए जाते हैं, और पूजा के अंत में प्रसाद वितरण किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में देवी की पूजा से संबंधित कई रस्में और रीति-रिवाज होते हैं, जो परिवार और समाज के कल्याण से जुड़े होते हैं।
 
 संगठनात्मक पूजा और मेले
उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में स्कंदमाता के नाम पर विशेष मेलों का आयोजन भी किया जाता है, जहाँ गाँव-गाँव से लोग आकर देवी की पूजा करते हैं। ये मेले देवी की महिमा और उनकी कृपा का उत्सव मनाने का अवसर होते हैं। इस दौरान देवी के मंदिरों में विशेष आरती और हवन का आयोजन होता है, और बड़ी संख्या में भक्तजन वहाँ आकर अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
 
 
इस प्रकार, स्कंदमाता की पूजा और उनसे जुड़ी लोक कथाएँ तथा परंपराएँ हमें यह सिखाती हैं कि देवी न केवल आध्यात्मिक शक्तियों का स्रोत हैं, बल्कि वे हमारे जीवन में सुरक्षा, सुख, और समृद्धि भी प्रदान करती हैं। उनकी पूजा से जीवन के सभी कष्टों का नाश होता है, और भक्तों को शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।


 नवरात्रि का महत्व 
(Significance of Navratri)
 
नवरात्रि हिंदू धर्म में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। इसे माँ दुर्गा की आराधना के पर्व के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ होता है 'नौ रातें', जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर दिन देवी के एक रूप की विशेष पूजा की जाती है, जो हमें जीवन के अलग-अलग पहलुओं के बारे में सिखाती हैं। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक चलता है।
 
नवरात्रि के दौरान हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है और भक्तजन अपने-अपने तरीके से माँ की पूजा करते हैं। नवरात्रि में उपवास, हवन, पूजा, और विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कई परंपराएँ और रीति-रिवाज शामिल होते हैं।
 
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